Menu
blogid : 261 postid : 3

पीपीपी यानी पब्लिक प्रभु पार्टनरशिप (व्यंग्य)

vidushak
vidushak
  • 19 Posts
  • 90 Comments

पिछले दिनों आगरा में था, वहां के लोगों की उद्यमशीलता, व्यावसायिक प्रवृत्ति और बिजनेस ट्रिक्स का लोहा मान गया। वे धंधा चलाने और चमकाने के एक से एक नायाब तरीके तलाश लेते हैं। अभी तक पीपीपी यानी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का नया सरकारी फॉर्मूला ही सुन रखा था, लेकिन आगरा में यह पीपीपी नए अवतार में चलन में है-पीपीपी यानी पब्लिक प्रभु पार्टनरशिप। आओ प्यारे जानें इस नई पीपीपी के बारे में-

आगरा के एक बड़े अखबार ने इस गोरखधंधे का भंडाफोड़ यूं किया है-शहर के बहुत बड़े डेरी संचालक की किसी जमाने में आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। एक पंडित ने उन्हें सलाह दी कि अपने अराध्य को बिजनेस में पार्टनर बना लो, फिर देखो कमाल। उन्होंने सलाह  सिरमाथे की, दांव चला और भोले बाबा यानी भगवान शिवशंकर को मुनाफे में दो फीसदी का पार्टनर बना लिया। फिर तो उनके धंधे से मुनाफे की ऐसी गंगा फूटी कि दाम तो कमाया ही, इस नए बिजनेस फॉर्मूले से अकूत-अथाह नाम भी कमा लिया। इसके बाद तो जिनके धंधे ठंडे पड़े थे, वो सभी भी निकल पड़े अपने-अपने पार्टनर की तलाश में।

सूत्रों के मुताबिक भोले को पार्टनर बनाने वालों की लंबी लाइन है। वजह भी साफ हैं-वे ठहरे भोले-भाले, चिलम पिलाकर बैलेंस शीट में घाटा दिखा दो या उनका दो फीसदी का प्रॉफिट मार भी जाओ तो वे परवाह करने वाले नहीं।

शहर में होड़ लग गई है अपने-अपने ईष्टदेवों को पार्टनर बनाने की, धड़ाधड़ बिजनेस कान्ट्रैक्ट साइन किए जा रहे हैं। अलमारियों में सिमटे देवों के आगे एमओयू रख दिए गए हैं, अब तुम्हारे हवाले धंधा किया प्रभु, घाटा हुआ तो तुम जानो। हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे।

कुछ सी-केटेगरी के देव भी हैं, ग्राम्य देवता टाइप के, वे देव दुखी हैं, उनकी मार्केट वैल्यू जीरो है। उनकी न कोई प्रभुता, न ही प्रभुसत्ता, उन्हें कोई भूले से भी नहीं पूछ रहा है। उनके भक्तों को खाने के लाले हैं, भक्ति ही उनका फुलटाइम बिजनेस है। जो बाजार के लायक नहीं, वो किसी लायक नहीं। जिन-जिन का प्रभु कृपा से धंधा चल या दौड़ पड़ा है, वे अब सयाने हो चले हैं। अपने बिजनेस सीक्रेट किसी से शेयर नहीं कर रहे हैं। दो सौ परसेंट का मुनाफा चीरने वाले रामदयाल शुक्ल, सूत वाले जब मंदिर के बाहर अग्रवाल जी के सामने पड़े तो वे पूछ पड़े-काहे सुकुल, किसको पार्टनर बनाया है आजकल आर्डर पे आर्डर झटक रहे हो, छंटनी की नौबत आ गई थी, कहां अब वर्कर पसीना पोछ-पोछकर ओवरटाइम कर रहे हैं।

राजफाश होते ही शुक्ल जी बिदक पड़े, बोले-अरे छोड़िए अगरवाल जी ये सब टुटके, हम तो ठहरे नास्तिक, कर्म ही पूजा है और नोट ही देवता। आप भी किसी झोलाछाप देवता के चक्कर में न पड़ जाना, ठगे जाओगे।

बताते हैं कुछ स्मार्ट और मार्केटिंग में माहिर देवताओं ने अपने को प्रमोट करना भी शुरू कर दिया है। अपने चेलों को लगा दिया है भक्तों को समझाने में कि फलाने की नहीं ढिमाके को पूजा करो। मित्तल को देखो कितनी तरक्की कर गया, तुम्हारी तरह रांग नंबर नहीं डॉयल किया। अब भी टाइम है, नैया पार लगानी हो तो फलाने का सुमिरन करो। सूत्र बताते हैं कि नए-नए देवता भी प्रगट होने लगे हैं। भक्तों में फुसफुसाहट शुरू हो गई है कि ई देवता का नाम तो पहली बार सुन रहे हैं, क्या वाकई ढंग के देवता हैं भी?

लगता है शायद ऊपर भी मंदी जैसी ही कुछ चल रही होगी कि देवाताओं को नीचे (नरक) वालों का बिजनेस पार्टनर बनना पड़ रहा है। बहरहाल इस नायाब नुस्खे ने ऊपरवाले और नीचेवाले दोनों की दुकानें चला दीं। मंदी से जूझने वाले मुल्कों को आगरा की वणिक बुद्धि से कुछ नसीहत लेनी चाहिए, खामखाह ही नई-नई तजवीजें सोच रहे हैं।

-विजय त्रिपाठी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh