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-विजय त्रिपाठी
उस अभागे पड़ोसी जनपद के सक्रिय अधिकारी वर्ग से लेकर लिपिक स्तर तक का मनोबल गिरा हुआ था। पूरी अफसरशाही जलालत से मरी-सी जा रही है। पड़ोस में कॉमनवेल्थ खेलों का महाकुंभ, स्टेडियम पर स्टेडियम निर्माण, खेल ढांचे से सारा शहर पाटा-सा जा रहा है, इतने स्टेडियम कि जगह कम, समय भी कम लेकिन उस दिल्ली शहर के अफसर इतने संगदिल और पेटू निकले कि एक स्टेडियम क्या, कमबख्त एक अखाड़ा तक इस खेलप्रेमी नगर की किस्मत में न आया। ऐसा होता तो यहां वाले कुछ तो राष्ट्रीय योगदान कर लेते, कुछ जेब भी मोटी कर लेते। लेकिन पड़ोसी जनपद के अधिकारियों की किस्मत में तो ललचाना ही लिखा था।
हालांकि इस जनपद की पब्लिक तो पब्लिक, अफसरों और नेताओं में भी एक से एक अखाड़ेबाज और निशानेबाज हैं, उनके अचूक दांव-पेच और निशानों ने बड़े-बड़े करामात किए हैं, दलीलें दी गईं कि यहां के कई जनाने-मर्दाने मल्लों ने अपने जनपद की यश पताका दूर-दूर तक फहराई, सारे दावे-दुहाई भी पेश किए गए लेकिन हाय कि हमारे साथ ये खेल। दुनिया भर में खेलनगरी के नाम से मशहूर इस जनपद के साथ ये नाइंसाफी, खुदा करे इनका खेल खराब हो, मणिशंकर अय्यर साहब की बद्दुआओं के असर की इस जनपद के अफसर दुआ कर रहे हैं।
उस जनपद की मायायी मशीनरी को कलेजे पर पत्थर (शिलान्यास वाले नहीं) कामनवेल्थ का काउंटडाउन करना पड़ रहा है। निर्माण कार्य का एक-आध इवेंट मिल जाता तो दो-चार साल माया-मोह त्याग, कोई खेल किए बगैर सात्विक रहकर गुजार लेते।
लेकिन उस पड़ोसी जनपद के बेचारे अफसरों की किस्मत में दिल्ली-नोएडा वाले अफसरों जैसे मौके ही कहां। एक साहब दुखड़ा रोते हैं कि यहां तो कोई प्रमुख आयोजन होता भी है तो सालाना दस दिवसीय कांवड़ यात्रा, जिसमें झोली में कुछ आता भी है तो टेंशन और फजीहत, दिन-रात की नींद हराम। बस नहीं चलता नहीं तो भगवान शंकर को ही अमन-चैन हराम करने के आरोप में अंदर कर देते। इस उत्सव में पल्ले पड़ती है तो मायूसी और बदइंतजामी की तोहमत, आवश्यक निर्माण कार्यो के प्रति शासन की अनदेखी से अफसरों को बड़ा घाटा उठाना पड़ रहा है।
बताया जा रहा है कि इससे हताश अफसर कुछ गुल खिला सकते हैं। साजिश रची जा रही है कि सिंचाई विभाग के कुछ लोगों को साथ लेकर गंगनगर से दिल्ली के लिए इतना पानी छोड़ दिया जाए कि दो चार स्टेडियम ही डूब जाएं।
केंद्र सरकार को खुफिया रिपोर्ट मिली है कि दिल्ली को कॉमनवेल्थ खेलों का आयोजन मिलने से दिल्ली के अफसरों और नेताओं के जो भाग्य खुले हैं, उससे शेष देश के अफसरों और नेताओं में भीषण असंतोष है। केंद्र इसे दूरदर्शिता और समाजवादी दर्शन से दूर करेगा। इसके लिए बालिका पौष्टिक आहार योजना घोषित कर दी गई है। ताजा रिपोर्ट है कि इस पौष्टिक योजना के आहार की सोच-सोच अफसरों ने अपनी तोंद पर हाथ फेर लार टपकाना शुरू कर दिया है।
अब खाने-पीने के भी सलीके होते हैं, दिल्ली वाले इस लिहाज से अनाड़ी हैं। अखबारों में उनकी करतूतों पर पन्ने दर पन्ने रंग गए, न अपनी सरकार को मैनेज कर सके न ही मीडिया को। अब वहां की ब्यूरोक्रेसी ने इस पड़ोसी जनपद के कुछ स्मार्ट अफसरों को कंसल्टेंसी के लिए बुलाया है। वे बाकी बचे समय में टिप्स लेंगे कि यहां के अफसरों के हाथ की ये कैसी सफाई है कि उनके दाएं हाथ को पता नहीं चल पाता कि बायां हाथ क्या कर रहा है। कुछ खेलप्रेमियों का सुझाव है कि कॉमनवेल्थ में इस बार कमाने-खाने की अफसरी प्रतिस्पर्धा भी शामिल की जानी चाहिए।
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