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वाह री माया: इनके दौरे लगें….उनको दौरे पड़े

vidushak
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अब किसी को बुलाने या किसी के यहां जाने के कुछ
रस्मी दस्तूर होते है। हमारी हिंदुस्तानी संस्कृति में
बुलाने-आने-जाने में मान-सम्मान का बड़ा ख्याल रखा जाता है। लेकिन अफसोस कि तमीज-तहजीब की मिसाल दिए जाने वाले यूपी के संदर्भ में इसको भुला दिया जा रहा है। एक अति सुरक्षित मां-बेटे के सूबे के असुरक्षित दौरों ने सर्वजन की सुरक्षा में दिन-रात एक किए मुख्यमंत्री की नाक में दम कर दिया है। जब तब मन किया और पहुंच गए अमेठी-रायबरेली-लखनऊ और जहां मन किया तहां धमक पड़े और अच्छे-खासे चल रहे स्टेट को डिस्टर्ब कर दिया। कभी लल्लू की लड़की की शादी में तो कभी अच्छन मियां के दावते वलीमा में। कभी गुमनामी बाबा बनकर किसी ट्रेन के जनरल डिब्बे में, तो कभी दलित की झोपड़ी में साग-रोटी खाई तो कभी लखनऊ के किसी रेस्टोरेंट में किटी पार्टी की दावत उड़ाई। ऐसे में लखनउवा के. पी. सक्सेना से रहा नहीं गया और वे झल्ला पड़े-अमां मियां ये दौरे कर रहे हो कि बहनजी से आइस-पाइस खेल रहे हो।
अब बहन जी के राजकाज का जो कायदा है, उस लिहाज से तो दोनों को प्रदेश में प्रवेश से पहले कायदे से अनुमति लेनी चाहिए, चलो अनुमति न लें तो कम से कम सूचित तो कर ही सकते हैै। लेकिन ये दोनों ही काम नहीं होते है। बात यहीं बिगड़ रही है। अब कहने वाले भले कह रहे हों कि इन वीवीआईपी दौरों से दलितासन पर सुविधाजनक स्थिति में बैठे शासन को दौरे पडऩे लगते हैैं लेकिन सूचना के आदान-प्रदान के शिष्टाचार के नाते देखा जाए तो दौरे वाकई आपत्तिजनक है भी।
इन दौरों की माया बड़ी गजब है। दौरों में वही सब देखा जाता है जो दिखाया जाता है और जिसे ही देखना चाहिए। दौरों में सब कुछ नहीं दिखना चाहिए। कुछ बाकी रह जाए तो आगे के दौरों की गुंजाइश बनी रहती है। अब बावले लोगदौरों से सब कुछ ठीक हो जाने की उम्मीद करने लगते है। अब अगर सब कुछ ठीक ही हो जाए तो फिर दौरे कैसे होंगे, राजा प्रजा के दुखदर्द सुनने कैसे निकलेगा।
अब सवाल ये भी उठ रहे है कि क्या सूबे की सारी समस्याएं रायबरेली-अमेठी में ही है? दरअसल ये दोनों क्षेत्र सूबाई निजाम के लिए अघोषित समस्याग्र्रस्त जिले बन गए है। ये दौरे बिलकुल उसी अंदाज में टीवी चैनलों पर दिखते है कि जैसे शहंशाह अपनी रियाया के हाल-चाल जानने निकलते थे। कुछ साल पहले ऐसे ही एक वंशानुगत शासक ने अपने राजकाज के शुरुआती दिनों में जब एक आदिवासी गांव का दौरा किया तो उन्हें एक आदिवासी से यह कहते हुए मिलवाया गया कि कई दिनों से रोटी न मिलने पर ये बेचारा भूसा खाकर गुजारा कर रहा है। इस चमत्कारिक कृत्य को सुनते ही शासक की हंसी छूट गई…क्या वाकई ये भूसा खा लेता है…सरप्राइजिंग। बेचारा भूखा चमत्कारी बाबा बन गया। रोटी का जुगाड़ हमेशा के लिए खत्म।
अब ये भी कोई दौरे होते है कि पब्लिक के बीच पहुंचे और हलो…हाय…कएसा हय..ओ माइ गॉड…ओके…ओके…थैक्यू…थैक्यू, सी यू नेक्स्ट टाइम… ये सब किया और चलते बने। अरे दौरे तो धमाकेदार अंदाज में होने चाहिए। दौरे देखना हो तो बहन जी के देखिए। हफ्तों पहले अफसरों की सांसें थम जाती है और महीनों सिर चढ़कर बोलता है।
अब तो यह साजिश जगजाहिर हो गई है कि बेअसर दौरे करने वाली हस्तियां इसीलिए सीएम को जलन में जानदार सुरक्षा मुहैया नहीं करा रही है कि उनके असरदार दौरे न हो सकें। वे नहीं चाहते कि हमारी सीएम साहिबा दौरों का भी कोई इतिहास रच सकें।
-विजय त्रिपाठी

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