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चलो महंगाई पर सरकार ने लगातार उच्चस्तरीय चिंतन के बाद कुछ तो किया। कमेटी बन गई है महंगाई की मतवाली चाल पर नजर रखने के लिए। कमेटी में पैनी नजर वाले, दूरदृष्टा किस्म के लोग रखे गए हैं..जिनकी दृष्टि का दुनिया लोहा मानती है..जो हो रहा है वो तो देख ही लें, जो हो सकता है और जो जनता को न दिखे वो भी देख लें। कमेटी के पास दिव्य दृष्टि है..दर्शनीयता है..और दर्शन भी है जो बाद में प्रकट होगा।
सरकार पर आए संकट के वक्त कमेटियां बड़ी काम आती हैं। कमेटी आंखों में आई ड्रॉप डालकर, महंगाई के ग्राफ पर नजर जमा के बैठ गई है कि देखें अब इस कमबख्त महंगाई की चाल और फिर कमेटी ऐसी चाल चलेगी कि महंगाई डायन होगी चारो खाने चित। लोगों को भले ही ये गंभीर न लगे लेकिन महंगाई ऐसे ही काबू आती है। अब हम हिंदुस्तानियों का रूदन स्थायी भाव-सा हो गया है। ज्यादा गर्मी तो हाय-हाय, ज्यादा सर्दी तो हाय-हाय। मुद्रास्फीति की दर सभी देख रहे हैं लेकिन जीडीपी और विकास दर कोई नहीं देख रहा है।
देश के महाशक्ति बनने की खुशी कुछ कंगालों और स्यापों के कारण दब जा रही है। अर्थशास्ति्रयों की सरकार होने के बावजूद देशवासियों की असल कमाई को लेकर बड़ा भ्रम पैदा हो गया है। सरकार कह रही है कि लोगों की आमदनी बढ़ गई है, खूब खर्च करने लगे हैं, एक टाइम खाने वाले दो-दो वक्त जीम रहे हैं, लिहाजा चीजों के दाम इसीलिए बढ़े हैं।
इसके उलट हाल ही में केंद्र सरकार के एक आयोग की रिपोर्ट आई है कि देश के ८० फीसदी लोगों की डेली इनकम २० रुपए से भी कम है। अब इस महाभ्रम के बीच यह तय करना मुश्किल हो गया है कि कौन भूखा है और कौन पेटू। इसी कन्फ्यूजन के कारण सरकार ने देश के तीन चौथाई लोगों को सस्ता गल्ला देने की सोनिया गांधी की सिफारिश ही ठुकरा दी है।
महंगाई की चिंता में दुबले एक सुधी का कहना है कि महंगाई. महंगाई. ये शोर तो खूब हो रहा है पर ये महंगाई आखिर है किसके लिए? भिखारियों के मोबाइल पर बतियाने की फोटो छप रही है, अब केंद्र सरकार सर्वे करेगी तो ऐसे भिखारी तो बीपीएल में आने से रहे। कूड़े बीनने वालों, रिक्शा चलाने वालों और कबाडि़यों के घरों तक में रंगीन टीवी लगे हैं। इधर उच्च वर्ग के नेता और अफसर की तो हर मौसम में मौज। उन्हें तो प्याज-टमाटर के भाव का भी पता नहीं रहता है। मारा जा रहा है तो महज बीच वाला तबका यानी मिडिल क्लास। लेकिन चिंता न करें, चिंता करने के लिए कमेटी बन गई है ना।
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