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प्रसंग-एक
होली पर गंभीर काम वर्जित होते हैं, इस पुरातन मान्यता का ख्याल न रखने वाले भुगतते हैं। उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल भुगत भी रहे हैं। होली का मौका है, रंग-गुलाल उड़ाने के बजाय बहनजी की सरकार की खिल्ली उड़ाने में लग गए। अब बहनजी ठहरी परंपरावादी, शायद बरसाने की लाठी बरसाने वाली होली उन्हें सत्ता में रहने के दौरान हमेशा प्रेरणा देती रहती है। सो अपनी परंपराओं का निबाह तो करना ही था। पता नहीं विपक्षी दलों ने किस कुएं का भांग मिला पानी पी लिया कि वे सड़कों पर उतर पड़े हुरियारों की तरह। अब शासन ने अगर लोक परंपरा का निर्वाह किया तो आखिर गलत क्या किया। मनुवादी होकर भी विपक्षी दलों की परंपराओं से ऐसी बेसुधी। बरसाने में तो साल भर लोग लाठियां बरसने का इंतजार करते हैं। पुरुष वर्ग महिलाओं की लाठियां खाकर भी खी-खी करता रहता है, क्या बच्चे और क्या बूढ़े। भई बुरा न मानो होली है, बहनजी ने नहीं माना तो तुम्ही लोग आखिर क्यों मान रहे हो। यह कोई बहनजी की नई परंपरा तो है नहीं। राजधानी में एक नया बरसाना बस रहा है। कोई गरजा तो कोई बरसा।
प्रसंग-दो
ए. राजा और हसन अली एक दूसरे को नोटों से सराबोर कर रहे हैं। एक सौ-सौ के नोटों से दूसरे को नहलाता तो दूसरा झट से पांच-पांच सौ के नोटों का बोरा खोल लेता और नोट उड़ेलने लगता। हरे-हरे नोटों पर गांधी जी ने मुस्कुराना बंद नहीं किया था। हसन अली के घोड़े घास की जगह हरे-हरे नोट चबा रहे थे। लान में बैठे आयकर और प्रवर्तन निदेशालय वाले नेग के लिए अपनी-अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। घोड़ों ने घास से दोस्ती कर ली थी।
प्रसंग तीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मुंह पर यूपीए गठबंधन के मुंहलगे रंगबाज दल कालिख पोत रहे थे। साझेदारों का ऐसा जोर कि पीएम साहब पूरी तरह सराबोर। होली पर खुन्नस भी निकाली जाती है, शायद सही कहा गया है। राजधर्म से बंधी कैबिनेट पिचकारियां लिये दूर खड़ी थी। सोनिया जी के व्यवस्था देने का इंतजार हो रहा था। सरकार होती तो बचाई जाए….पीएम को कौन बचाए। तमतमाए मनमोहन बोले-गठबंधन की मजबूरियां है, मुंह काला करवा लिया, वरना बेरंग करना उन्हें भी आता है। उनका कुर्ता-पाजामा तार-तार हो गया था, लेकिन सब निश्चिंत थे कि सरकार की इज्जत खतरे में नहीं है। सरकार और सरदार दोनों अलग-अलग चीजें होती हैं।
प्रसंग चार
मंहगाई मंत्री ..सॉरी-सॉरी…कृषि मंत्री शरद पवार महंगाई मेम के साथ होली की ठिठोली कर रहे थे-जानेमन तुम्हारी मोहब्बत में हम कितने बदनाम हो गए, तुम क्या जानो। तुम्हारा ग्राफ तो शीला की जवानी की तरह चढ़ रहा है। महंगाई मुद्रास्फीति की तरह मुंह बनाकर बोली-चलो हटो..झूठे कहीं के..तुमसे कुछ होता-हवाता तो है नहीं। एक हफ्ते रेट ऊपर होता नहीं है कि अगले हफ्ते ही डाउन, कभी एक लेवल पर टिका कर तो रखते नहीं हो। पवार साहब सफाई पर सफाई दे रहे थे-…कमबख्त विपक्षी दल कन्संट्रेट ही नहीं करने देते हैं। लाल-लाल गाल लिये अमीरी रेखा अपनी बारी का इंतजार कर रही थी। उधर पवार के दरवाजे पर होली की त्योहारी मांगने के लिए गरीबी रेखा के नीचे वालों की लाइन लगी थी।
और कुछ शेर-ओ-शायरी
गले मुझको लगा लो ए दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ए यार होली में.
नहीं यह है गुलाले सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे,
ये आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में.
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो,
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में.
है रंगत जाफ़रानी रुख़ अबीरी कुमकुम कुछ है,
बने हो ख़ुद ही होली तुम ए दिलदार होली में.
रसा गर जामे-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझको भी,
नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में.
(यह नज्म काफी पहले लिखी तो इस नाचीज ने ही थी, न जाने कैसे भारतेंदु हरिशचंद्र के नाम हो गई)
-विजय त्रिपाठी
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